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Monday, July 18, 2016
Ethics in Education and changes in our Vaidik history
Saturday, July 9, 2016
Wednesday, March 2, 2016
Right Decisions in Dilemma (धर्मसंकट)
Friday, July 31, 2015
Relation between Science and religion
प्रकृति-धर्म और विज्ञान का जनक
जब हम प्रकृति की बात करते हैं तो हमारे मस्तिष्क में आस पास के वातावरण की छवि उभर आती है...पहाड़, झरने, नदियाँ, समुद्र, जीव जन्तु, पक्षी,मानव जीवन...इत्यादि...यहाँ तक कि पूरे ब्रह्माण्ड की कल्पना तक कर लेते हैं हम। इसका अर्थ यह है कि मनुष्य और प्रकृति के बीच बहुत गहरा और मजबूत रिश्ता है। और हो भी क्यों न क्यों कि मनुष्य ने जो कुछ भी सीखा है वह प्रकृति से ही तो सीखा है और सीखता चला आ रहा है चाहे वह धार्मिक बातें हो या वैज्ञानिक सिद्धांत। इसका अभिप्राय यह है कि विज्ञान और धर्म दोनों का जनक प्रकृति ही है।
मानव की आंतरिक चेतना का मार्गदर्शन धर्म करता है। आखिर सभी धर्मों से सर्वोपरि जिस मानवता की बात हम करते हैं वो सभी बातें हम किसी न किसी धर्म से ही तो सीखे हैं। वहीँ भौतिक चेतना का मार्गदर्शन विज्ञान करता है। विज्ञान प्रकृति से हमें कुछ ऐसी बातें सिखाता है जो हमारी आस्था का केंद्र बन जाता है और दोनोँ एक दूसरे के पूरक बने हुए है। यहाँ विज्ञान को प्राथमिकता देने से मेरा मत यह नहीं है कि विज्ञान धर्म से ज्यादा श्रेष्ठ है। मनुष्य के जीवन में संतुलन के लिए विज्ञान और धर्म दोनों का महत्वपूर्ण स्थान है।
जहाँ एक ओर धर्म, विज्ञान और प्रकृति आपस में सम्बंधित हैं वहीँ विज्ञान और धर्म में भी बहुत गहरा सम्बन्ध है। जहाँ एक ओर बिना विज्ञान के कोई धार्मिक काम नहीं हो सकते वहीँ दूसरी ओर विज्ञान के खोजों में लगे वैज्ञानिकों को प्रेरणा धर्म और अध्यात्म से ही मिलती है। अतः दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और हो भी क्यों न क्योंकि दोनों ही प्रकृति से पैदा हुए है। प्रकृति में इन दोनो का वही स्थान है जैसे मनुष्य के दोनों हाथ होते है।
परंतु यहाँ चिंता का विषय यह है कि कुछ अवसरवादियों ने स्थिति का फायदा उठा कर धर्म और विज्ञान के बीच में एक गहरा खाई बना दिया है। जिसमें मानव समाज डूबता नजर आता है। एक तरफ विज्ञान के प्रमाणित सिद्धान्त तो दूसरी तरफ धर्म के नाम पर उत्त्पन्न किया गया अन्धविश्वास और रूढ़िवादिता।
इस भ्रम की स्थिति में सम्पूर्ण मानव जाति का विकास और कल्याण नहीं हो पा रहा है। और इसका दुष्परिणाम यह है कि मनुष्य इस जंजाल में उलझा रहता है कि विज्ञान सत्य है या धर्म। परंतु सत्य तो यह है कि दोनों सत्य हैं , गलत तो अन्धविश्वास और कुरीतियां हैं। जैसे किसी मनुष्य के दोनों हाथ अलग नहीं किये जा सकते है ठीक उसी प्रकार धर्म और विज्ञान को अलग नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह दोनों प्रकृति के दोनों हाथ है।
जिस प्रकार विज्ञान में प्रत्येक सिद्धांत की प्रयोगात्मक पुष्टि की जाती है और किसी सिद्धान्त की पुष्टि न हो पाने पर उस सिद्धांत को नगण्य मान लिया जाता है ठीक उसी प्रकार धर्म में फैले हुए अन्धविश्वास और कुरीतियों को मिटाना होगा। और इस कार्य में समाज को प्रत्येक वर्ग की आवश्यकता है खासकर युवाओं की। यह आज के युवाओं के लिए एक चुनौती है कि वह लोगों को जागरूक करें और मानव जीवन का बेड़ागर्क होनें से बचायें। हमारे देश में फैली हुई जाति और धर्म की राजनीति से बचायें। जिस दिन मनुष्य विज्ञान और धर्म के बीच की खाई पाट लेगा उसदिन वह खुद विकास के पथ पर अग्रसर हो जायेगा और चलता ही चला जायेगा!!!
....रवि प्रकाश गुप्ता
Friday, July 3, 2015
Migration of people from villages
जब मैं शहर में रोजगार के लिए भटक रहे लोगों की भीड़ को देखता हूँ तो मुझे लगता है कि ये हमारे देश के सिस्टम का दोष है कि वह जनसँख्या के अनुपात में लोगो को रोजगार के अवसर नहीं उपलब्ध करा पा रहा है। मुझे मजदूर वर्ग से लेकर उच्च शिक्षित युवा वर्ग तक के लोग रोजगार के लिए भटकते हुए दिखाई देतें हैं।
ये तो हुआ शहर का परिदृश्य, अब मैं आपको ग्रामीण परिदृश्य दिखाना चाहूँगा।
अभी मैं अपने गाँव गया और वहाँ चल रहे कृषि कार्य को देखा और उसे समझा तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ।
आज कल ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि कार्य बहुत जोरों से चल रहा है। खरीफ की बुवाई चल रही हैं। मैंने यहाँ देखा की धान के रोपाई के लिए श्रमिक ढूढ़ने पर नहीं मिल रहे। और कृषि के लिए ही नहीं बल्कि अगर आपको किसी और कार्य के लिए भी श्रमिक चाहिए तो भी जल्दी नहीं मिलेंगें।
अब यदि हम गौर करें तो हमें कितना विरोधाभास देखने को मिलेगा कि एक तरफ लोग रोजगार पाने के लिए लाइन लगाये खड़े है और दूसरी तरफ रोजगार के लिए लोग नहीं मिल रहे है।
अब मुझे समझ में नहीं आता है कि इसमें किसका दोष है, लोगों का या सिस्टम का?
मैंने शिक्षित लोगों को मनरेगा से भी कम वेतन पर, यहाँ तक कि उससे आधे वेतन पर भी काम करते हुए देखा है। एक तरफ कृषि कार्य को करने के लिए लोग नहीं हैं और दूसरी तरफ लोग इतने कम वेतन पर भी कार्य करने को तैयार हैं।
अभी हाल में ही WHO ने एक रिपोर्ट जारी किया है कि पूरे विश्व में सबसे ज्यादा तनावग्रस्त लोग भारत में रहते हैं, करीब 25 प्रतिशत लोग। मतलब प्रत्येक 4 लोगों में 1 लोग तनावग्रस्त हैं। मुझे इसका मुख्य कारण बेरोजगारी ही प्रतीत होता है।
मुझे समझ में नहीं आता है कि लोग इतनी छोटी मोटी नौकरी करके अपने आप को कैसे संतुष्ट कर लेते हैं, जबकि उनके पास कृषि या अन्य रोजगार को चुनने का विकल्प होता है। हमारे देश के नीति निर्माताओं को किसी ऐसी योजना का निर्माण करना चाहिए जिससे कृषि और लघु उद्दोग से विमुख हो रहे लोगों को पटरी पर लाया जा सके। और गाँव से हो रहे पलायन को रोका जा सके।
जय हिन्द!
आपका
रवि प्रकाश गुप्ता
Wednesday, June 17, 2015
English in India
किसी भी प्रतियोगी परीक्षा का यदि पाठ्यक्रम देखा जाये तो सब जगह अंग्रेजी भाषा सबसे अधिक महत्वपूर्ण प्रतीत होता हैं और सफल होने के लिए निर्णायक भी साबित होता है।
मुझे समझ में नहीं आता है कि इसे हम अपनी भाषा के महत्व को खो देने का दुर्भाग्य समझे या विदेशी भाषा के अध्ययन का सौभाग्य!
कृपया अपने विचार व्यक्त करें।
Wednesday, April 29, 2015
Our Old technology
#NepalEarthquake #Uttarakhand #OldTechnology vs #MacaulaySystem
नेपाल में आये त्रासदी से मैं काफी आहत हूँ। मैं प्रार्थना करता हूँ कि इस त्रासदी में मारे गए सभी लोगों के आत्मा को भगवान शांति दें। और वहां जल्द ही जन जीवन सामान्य हो।
परंतु सोचने की बात यह है कि चाहे उत्तराखंड का बाढ़ हो या नेपाल का भूकम्प, दोनों त्रासदी में भगवान भोलेनाथ के मंदिर को कुछ न हुआ। कुछ लोग इसे भगवान भोलेनाथ की कृपा कहेंगें और मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं, अंततः कुछ तो बचा इस भीषण त्रासदी में।
परन्तु एक सिविल इंजीनिअर के तौर पर मैं यह कहना चाहूँगा कि ये सभी उदाहरण भारतवर्ष के तकनीकी शिक्षा और शिल्पकला के अदभुत उदहारण हैं। हमें प्राचीन भारतवर्ष के ज्ञान विज्ञान पर गर्व होना चाहिए। अगर हम गुलाम न हुए होते तो आज हम विश्व में प्रथम स्थान पर होते।
अतः हमें अपने भारतवर्ष के शिक्षा प्रणाली पर ध्यान देना चाहिए। वर्तमान शिक्षा प्रणाली को बदल कर हमें अपने शिक्षा प्रणाली से अध्ययन करने की आवश्यकता है। हमारे वेदों तथा ग्रंथो में अपार ज्ञान का भण्डार है, बस आवश्यकता है उस ज्ञान को पुनर्जीवित करने की।
हमारे इतिहास में अनेकों उदहारण हैं, जिससे हम कह सकते है कि अगर हम मैकाले शिक्षा प्रणाली से आज़ाद होकर अपने शिक्षा प्रणाली से अध्ययन करना प्रारम्भ करे तो फिर से हम बहुत तेजी से विश्व गुरु बन सकते है चाहे वह कोई भी क्षेत्र हो, कला, विज्ञान, अध्यात्म आदि।
बस जरुरत इस बात की है कि हमें कुछ कुरीतियों और अंधविश्वासों को मिटा कर अपनी प्राचीन प्रणाली को लागू करना होगा।
जय हिन्द!!!
रवि प्रकाश गुप्ता